माज़ी की खिड़की से जिंदगी की वादियां झांकता शायर ‘अक्फ़र’

0
27

एक शायर अपने जीवन में जिन हादसात और तुजुर्बात से गुजरता है, उन्हीं को अपनी शायरी की माला में पिरोता है। हिमाचल के जिला कांगड़ा

, पालमपुर के शायर वीपी सिंह ‘अक्फर’ के नज्म़ात में ऐसे ही तुजुर्बात पढ़ने को मिलते हैं। विवेक प्रकाश सिंह ‘अक्फ़र’ के संग्रह ‘जिंदगी आज मुझे जीने दे’ में से हम आज जिस रचना को पेश कर रहे हैं उसमें शायर अपने अतीत को याद करता है और अपने कल की फिक्र में है। आदमी की फितरत ही ऐसी होती है, उसे हमेशा अपने अतीत की यादें हसीन लगती है। कुछ हसीन यादों में वह कई कड़वाहट भरे लम्हे भूल जाता है।

‘क्यों है ऐसा के तेरे ‘कल’ के लिए
‘आज’ को अपने मैं भुनाता हूं
सिलसिला ख़त्म ये होता ही नहीं
मुसलसल जिये चला जाता हूं

‘आज’ मरता है मेरा ‘कल’ के लिए
‘कल’ कमबख़्त के आता ही नहीं
कफ़न ओढ़े हुए हर ‘आज’ मेरा
दफ़न भी रोज़ ये हो पाता नहीं

आज को कल की न तज्वीरें दे
जि़ंदगी की सही तस्वीरें दे
तफ़क्कुर-ए-कल में फ़ना क्योंकर
तफ़न्नुन-ए-आज की तदबीरें दे

जिंदगी आज मुझे जीने दे
जिंदगी आज मुझे जीने दे’

(इस बार नज्म़ पर आधारित सुंदर चित्रकारी भी प्रस्तुत कर रहे हैं। यह चित्र शायर विवेक प्रकाश सिंह ‘अक्फ़र’ के संग्रह ‘ जिंदगी आज मुझे जीने दे’ से लिए गए हैं)

प्रस्तुति : एस-अतुल अंशुमाली

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here