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रविवार का साहित्य : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता व नादौन के शायर मुनीश तन्हा की ग़ज़ल

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समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना। इनकी कविताओं में आमजन की व्यथा, व्यंग्य, प्रेम की अनुभूति व बौद्धिकता पढ़ने को मिलती है। कवि शमशेर सिंह, नागार्जुन, अज्ञेय और त्रिलोचन के समकालीन सक्सेना ने कई महान कृतियां की रचना की, जो हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य धरोहर है। इनकी प्रमुख कृतियों में ‘काठ की घंटियां, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएं, जंगल का दर्द, खूंटियों पर टंगे लोग इत्यादि हैं। प्रस्तुत इै इनकी कविता ‘जड़ें’, जिसे पढ़कर सच्चे प्रेम की अनुभूति होती है।

जड़ें

जड़े कितनी गहरी हैं
आंकोगी कैसे ?
फूल से‌ ?
फल से ‌‌‌?
छाया से?
उसका पता तो इसी से चलेगा
आकाश की कितनी
ऊंचाई हमने नापी है,
धरती पर कितनी दूर तक
बाँहें पसारी है।

जलहीन, सूखी, पथरीली
जमीन पर खड़ा रहकर भी
हो हरा है
उसी की जड़ें गहरी है
वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।

ग़ज़ल का सफ़र

 

पहाड़ी कविताओं से लेखनी की शुरुआत करने वाले हिमाचल के जिला हमीरपुर, नादौन से शायर मुनीश तन्हा ग़ज़लकार के रूप में भी पहचान बना रहे हैं। हिमाचल के अलावा अन्य राज्यों में होने वाले मुशायरों में लगातार शिकरत करते हैंं। महान शायर बेकल उत्साही व कवि व महान गीतकार गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ के साथ भी मंच साझा कर चुके हैंं। उनका एक ग़ज़ल संग्रह ‘सिसकियां’ प्रकाशित हो चुका है। इसी संग्रह से प्रस्तुत है एक ग़ज़ल—-

ग़ज़ल

ये जि़ंदगी जो मुहब्बत में यागुजरी है
कहूं मैं आप से सच शानदार गुजरी है।

कभी न हमने किया देख जि़ंदगी शिकवा,
नज़र इधर भली या सोगवार गुजरी है।

तुम्हें नहीं है बताया मगर समझ लो सनम
जिगर से कोई छुरी आर-पार गुजरी है।

उन्हें भी चैन कहां देख मिल गया होगा,
अगर ये रात मेरी अश्कबार गुजरी है।

लड़ें जो सच के लिये देख एक बार मरे,
जो बद है उनपर तो ये बार-बार गुजरी है।

जो पूछते हो पता मौत का बताऊं मैं,
अभी-अभी वो लहर पे सवार गुजरी है।

 

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