हिमाचल के जिला सिरमौर के नाहन रानीताल के रहने वाले जावेद उल्फत एक बेहतरीन ग़ज़लकार के रूप में उभर रहे हैं। स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद जूडो कराटे की कोचिंग देते हैं। हिमाचल के बेहतरीन शायरों में शुमार जावेद उल्फत की ग़ज़लों में अशआर जैसे मोतियों की माला पिरोयी गई हो। इनकी ग़ज़लों में रूहानियत का रंग, तुजुर्बात की गहराई और जदीदियत देखी जा सकती है। जिंदगी की कश्मकश और तड़प भी इनकी शायरी में उभरकर आती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि भविष्य में जावेद उल्फत एक बेहतरीन शायर के रूप में मशहूर होंगे और ग़ज़लों की दुनिया के चमकदार सितारे होंगे। नववर्ष के पहले सोमवार को हम शायर जावेद उल्फत की कुछ ऐसी ही ग़ज़लें पेश कर रहे हैं।
शायर जावेद उल्फत की तीन ग़ज़लें
ग़ज़ल
ज़िंदगी है मेरे हाथों में तराज़ू की तरह
वक्त ठहरा है मेरी आंखों में आंसू की तरह
तीरगी यादों की, पलकों पे आ के बैठ गई
रात घिर अाई है सर पर तेरे गेसू की तरह
आइने में मेरे चेहरे का तेरा हो जाना
मुंह चिढ़ाता है मुझे रात के जादू की तरह
मैं जहां जाऊं महकता है तसव्वुर तेरा
साथ रहता है वो एहसास की खुशबू की तरह
तेरे जाने पे ये एहसास हुआ है अक्सर
ख़ाली ख़ाली सी है दुनिया मेरे पहलू की तरह
जलती रख आया हूं आंखें मैं कहीं चौखट पर
तेरी राहों में है रोशन किसी जुगनू की तरह
वस्ल के बाद भी सुनता हूं हंसी को तेरी
देर तक कान में बजती है वो घुंघरू की तरह
ग़ज़ल
कोई मुझ को तकता है कनखियों के पहलू में
चेहरा मुस्कुराता है हिचकियों के पहलू में
हंसती मुस्कुराती वो मुझ को तकती रहती है
चांद जैसी इक लड़की खिड़कियों के पहलू मे
प्यार पलता है अक्सर सख़्त दिल के कोनों में
बारिशें बरसती हैं बिजलियों के पहलू में
हाथ छोड़ जाने का माहे ग़म दिसंबर है
पतझडें तड़पती हैं सर्दियों के पहलू में
घर के मांझे की डोरी, छत पतंग और बच्चे
अब कहां ये मिलते हैं चरखियों के पहलू में
अपने बीवी बच्चों की की याद में तड़पते हैं
सरहदों पे फौजी दिल वर्दियों के पहलू में
लहलहाते जंगल की खिलखिलाती बारिश थी
मोर नाचते देखे हिरनियों के पहलू में
वो हसीं बहारों सी बाग़ में जब आती है
फूल खिलने लगते हैं तितलियों के पहलू में
नींद जब खुली “उल्फत” उस की याद आ बैठी
करवटें ली सांसों ने गर्मियों के पहलू में
ग़ज़ल
शाम सूरज ढ़ला बदलियां जल गईं
देख पच्छिम तेरी सुर्ख़ियां जल गईं
ज़िन्दगानी में बचपन कहीं खो गया
भूख़ की आग में कापियां जल गईं
ऐसी सर्दी कि घर में दिया तक न था
फूस छप्पर जले गर्मियां जल गईं
मैंने अपने लिए रोशनी मांग ली
उन की आंखों में सौ बिजलियां जल गईं
साएं साएं का इक शोर था रात भर
बासबब रात की सिसकियां जल गईं
तंगदस्ती तू सब सांकलें खा गई
रिश्तों की वक्त पर डोरियां जल गईं
तेरी यादों में जागा किए रात भर
इतने तारे गिने उंगलियां जल गईं
शायर जावेद उल्फत
बहुत सुन्दर ग़जलें कही हैं भाई जी। जरा मात्राओं का ध्यान रखियेगा। शुभ कामनायें।