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Friday, March 29, 2024

साहित्य संडे : नगरोटा सूरियां के शायर सुरेश भारद्वाज ग़ज़ल की शमअ कर रहे रोशन

हिमाचल में साहित्य व साहित्यकारों की बात की जाए तो कुछ चुनिंदा नाम ही सामने आते हैं, लेकिन जब साहित्य को खोजा जाए तो कई ऐसे नाम सामने आएंगे जो चुपचाप बिना किसी लोकप्रियता के शोर के अनवरत अपनी साधना में लगे हैं। ऐसे ही कई नामों में एक नाम हैं नगरोटा सूरियां के साहित्यकार सुरेश भारद्वाज जो वर्तमान में धर्मशाला में रहते हैं। बकौल सुरेश भारद्वाज उन्होंने 1968 में पहली रचना अंग्रेजी में लिखी थी। इसके बाद लिखने का क्रम लगातार जारी रहा। उन्होंने हिंदी साहित्य के पद्य में मुक्तक, दोहे, कुंडलियां, गीत, ग़ज़ल आदि विधा में रचनाएं लिखीं। इसके साथ गद्य में लघुकथा और कई लेख लिखे। हिंदी के साथ पहाड़ी भाषा में भी कई रचनाएं लिखीं।

 प्रकाशित रचनायें 
हिमाचली पहाड़ी काव्य संग्रह “इक अम्मां थी”
साझा काव्य संग्रह …सीरां, महकते पहाड़, नूर-ए-ग़ज़ल, स्वरांजलि, बज्मे हिंद, प्रत्यंचा, वो इक्कीस दिन, नमन माता

साहित्यकार सुरेश भारद्वाज, नगरोटा सूरियां, धर्मशाला, कांगड़ा

पिता,पहाड़ी कलम, अधर धारा (नाटक संग्रह), काव्यप्रदीप, सिरफिरे परिन्दे, कारोना काल में साहित्य।

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन
हिन्दी कहानियाँ, लघुकथाएं, गज़लें, कवितायें लेख पत्रिकाओं और अखवारों में प्रकाशित आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण सम्मान : आथर्ज़ गिल्ड आफ हिमाचल वर्तमान अंकुर और कई अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित

अंग्रेजी में लिखी पहली कविता
साहित्यकार सुरेश भारद्वाज भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देने के बाद स्टेट बैंक आफ पटियाला, पंजाब नेशनल बैंक में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं और सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत हुए हैं। इन्होंने बताया कि 1967-68 में आकाशवाणी गोहाटी से कविताओं का प्रसारण हुआ। पहली बार सच्ची घटना पर आधारित अंग्रेजी में “A FAIR LADY” कविता लिखी थी। इसके बाद 1968 से वे लगतार साहित्य रचना में लगे हुए हैं।  पहली बार हिन्दी की रचना “मुक्ति” पत्रिका में प्रकाशित हुई। यह पत्रिका मंडी से प्रकाशित होती थी । इन्होंने “इक अम्मा थी” खंड काव्य की रचना पहाड़ी भाषा में की। इसके अलावा 216 मुक्तक और 216 दोहे लिखे, लेकिन तीन सौ के आस पास ही रचनाएं अभी तक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो पाई हैं।

सुरेश भारद्वाज की ग़ज़लें

ग़ज़ल
खुलकर नहीं हँसे नहीं छुपकर ही रो सके
बदकिस्मती से हम नहीं उनके जो हो सके

बढ़ते रहे ये जख्म कुकुरमुत्तों की तरह
चुभते रहे जो रातों में और हम न सो सके

चाहत भी सर्द हो गयी अब उनकी यार क्यूँ
दिल के ये गहरे जख्म नहीं हम भी धो सके

जैसी भी बीती अच्छी ही बीती यहां मगर
आँखों में उम्र बीती कोई पल न सो सके

जाने से उनके हो गये बर्बाद क्या कहें
खुशियों का बीज फिर कोई हम भी न बो सके

एहसास मेरे गुम हुए उनकी ही यादों में
भूले नहीं जो उनको न उनमें ही खो सके

लोगों ने दी ऐसी चुभन जाने है किसलिए
भारी हुआ ये जीना न हम बोझ ढो सके

ग़ज़ल
अब बचा क्या है यहां पे मुस्कराने के लिए
जिन्दगी की अहमियत है बस दिखाने के लिए

घर की इस दहलीज़ पर तो अब नहीं आता कोई
पास मेरे कुछ नहीं है अब बचाने के लिए

अपना कोई था नहीं और कोई बन पाया नहीं
खोजते रिश्ते रहे हम दिल लगाने के लिए

चाँद ने भी चाँदनी से तोड़ ली हैं यारियाँ
बादलों को कह दिया आँसू बहाने के लिए

दोस्ती की कोशिशें सब हो गयीं नाकाम सी
है सुनाया हुक्म हमको दूर जाने के लिए

सारी दुनिया है परायी हो गयी मेरे लिए
किसकी खातिर दिल जलायें पास आने के लिए

दूरियांं बढ़ने लगी हैं पास उनके जायें कैसे
क्या बहाना हम लगायें लौट आने के लिए

कौन अपना है यहाँ पर जिसको अपना कह सकें
किसके घर अब जायेंगे हम दुख सुनाने के लिए

जब से देखा है उन्हें हम तो दिवाने हो गये
हैं बहुत तड़पे गले उनको लगाने के लिए

ग़ज़ल
दुनिया में तुम ही नहीं हमसे जुदा और भी हैं
तुम ही रहते नहीं हो हमसे ख़फ़ा और भी हैं

मुश्किलें भी तो बहुत हैं यहाँ तू जान लेना
हम अकेले नहीं हैं इनकी दवा और भी हैं

मसले उलझे हैं यहाँ पर सदा से ही बेशक
देने वाला मैं ही क्यूँ अपनी रज़ा और भी हैं

इश्क तेरा किसी को रास नहीं आया कभी
लुटने वाला नहीं मैं ही था सदा और भी हैं

नाम तेरा यूँ ही लोगों ने लिया है खुदाया
दर्द देते रहे जो मुझको खुदा ! और भी हैं

घर चिरागों से ही रौशन हुआ करते हैं सदा
इन अँधेरों में तो अब मेरे सिवा और भी हैं

ग़ज़ल
बिन तेरे जहां में कोई सहर नहीं आती
अब तो यार की भी कोई खबर नहीं आती

डूबा है ये दिल मेरा तेरे प्यार में ही क्यूँ
मुझको चैन बिन तेरे अब मगर नहीं आती

रास्ते वो भूला हूँ साथ साथ चलते थे
पहुँचे तुझ तलक जो ऐसी डगर नहीं आती

वेग से नदी आकर थी समाई उसमें पर
कैसा है समंदर कोई लहर नहीं आती

तूफाँ है अँधेरा है गर्जते हुए बादल
क्या करूँ अकेला अब तू भी घर नहीं आती

जीने की तमन्ना है जीने वो नहीं देते
सच है जिन्दगी अब मुझको नज़र नहीं आती

रात भर तेरी यादें मुझको तो हैं तड़पातीं
नींद अब मुझे कोई भी पहर नहीं आती

राहें में तेरी तकता रहता हूँ न जाने क्यूँ
संदेशा हवा देती है तू पर नहीं आती

तेरे बिन तो जीना क्या है ये अब मेरा जीना
मै तो मर ही जाऊँगा तू अगर नहीं आती

शायर का पता : सुरेश भारद्वाज, धर्मशाला, मोबाइल नंबर : 9418823654

 

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3 COMMENTS

  1. हिमाचल ब्रेकिंग में मेरी ग़जलों को स्थान देने और मेरे जीवन पर पाठकों को जानकारी देने के लिए अतुल अंशुमाली जी का दिल की गहराईयों से आभार शुक्रिया। नमन

  2. बहुत ही सुन्दर प्रयास दिव्या हिमाचल में भारद्वाज जी को और उनकी रचनाओं को स्थान देने का। भारद्वाज जी को बधाई। अतुल जी का धन्यवाद।

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